रविवार, 26 अप्रैल 2015

समर्पण (कविता)

सहजता से लक्ष्य की ओर बढना,
निश्चितता से उसको  पूर्ण करना,
जिम्मेदारी को विशेष से समझना,
समर्पण शायद इसी को मान लेना।


पूर्ण जिम्मेदारी ही पूर्ण समर्पण है
इसे स्वीकार करना थोड़ा कठिन है
मैं जिम्मा लेता हूँ  या मैं समर्पित हूँ,
अधिकांश सुनने को यही मिलता है।


जिम्मेदारियों को लेकर उलझ पड़ना
उस समय समर्पण को याद रखना।
वही आगे बढ़ने की शक्ति देती है,
जिम्मेदारी का आधार ही समर्पण है
---------@रमेश कुमार सिंह


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