सोमवार, 30 मार्च 2015

जीवन (कविता)


दु:ख,
मिलता है,अगर हम,
खुशियां इकट्ठा,
करने में लगे हैं।
सुख,
मिलता है अगर हम,
खुशियाँ,
बाटने में लगे हैं।
यह दु:ख-सुख,
है क्या?
दोनों भाई हैं,
ऐसे भाई हैं।
कभी साथ नहीं रहते।
आते हैं,
अपनी अपनी बारी की,
प्रतीक्षा कर,
करते हैं सफर,
जीवन को साधन बनाकर,
अपनी-अपनी,
मंजिल की तलाश में,
हमेशा,
लगे रहते हैं जीवन में।
-------------रमेश कुमार सिंह ♌

रविवार, 29 मार्च 2015

राहगीर (कविता)

चला जा रहा चला जा रहा,
कहाँ जा रहा कहाँ जा रहा,
पता नहीं मुझे पता नहीं,
कहाँ जा रहा पता नहीं।
अपने दिल के अन्दर,
लिए सुख दुख का समंदर,
लिये दुखो का भण्डार,
या फिर लिए सपने सुन्दर,
पता नहीं मुझे पता नहीं,
कहाँ जा रहा पता नहीं।
अपनी मंजिल साथ लिए वह
अपने दिल में आस लिये वह
शायद करने कोई महान कार्य
दिल दिये जलाये हुए वह
पता नहीं मुझे पता नहीं,
कहाँ जा रहा पता नहीं।
भाई मेरे इधर तो आओ
कहाँ जा रहा मुझे बताओ
तब वह मुझसे आकर बोला
दुनिया में है अनेक दिल वाले
दर्द है अब तक जिनके दिल में
खुद हँसो और सबको हँसाओ
बात यही मै बताने जा रहा
चला जा रहा चला जा रहा।
~~~~~~~रमेश कुमार सिंह ♌

शुक्रवार, 27 मार्च 2015

उम्मीद भरा वो सारे पल (कविता)


उम्मीद भरा वो सारे पल, अब विखरता जा रहा है।
बीत गये सुख भरे पल, दु:ख भरा पल   आ रहा है।


एक-एक होकर सामने, धुधलापन होता जा रहा है।
कायम है अंधेरा सामने,बढता हुआ चला आ रहा है।


रोशनी के लिये हर पल, कोशिश करता जा रहा हूँ।
मगर कमी तेल का सामने,नज़र में पड़ता जा रहा है।


रोशनी के बिना एक पल, आगे नहीं बढ़ा जा रहा है।
अंधकारमय भविष्य हरक्षण, ऐसा समझ में आ रहा है।


आशातीत किसी के सामने,नाउम्मीद नजर आ रहा है।
समस्या है मेरे सामने ,समझ में कुछ नहीं आ रहा है।

----------------रमेश कुमार सिंह /०८-०३-२०१५

रविवार, 22 मार्च 2015

माँ


माँ
क्या होती है ?
ये सबसे ज्यादा
वहीं जानता है,
जिनके पास माँ,
नहीं होती हैं।
भगवान भी,
अजीबोग़रीब है।
किसी को माँ की,
ममता के पास रखता है,
तो किसी को दूर।
उस बच्चे का क्या,
कसूर ?
जिसके पैदा होते ही,
माँ मर गयी।
यही कसूर कि,
अपने नई दुनिया में,
कदम रखते ही,
माँ को विदा कर दिया।
हे! भगवान
उन बच्चों पर रहम कर,
जिन्हें माँ की,
ममता की,
माँ की गोद की,
उँगलियाँ पकड़कर,
चलने की।
माँ के आचल की,
बच्चे के जीवनपर्यंत,
काम आने वाले दूध की,
माँ की छत्रछाया में ,
पलने की जरूरत है।
-------रमेश कुमार सिंह ♌
-------०८-०३-२०१५

गुरुवार, 12 मार्च 2015

विद्यालय के बच्चे (कविता)

यही है ,विद्यालय के बच्चे
बच्चे हैं,विद्यालय के यही।


अभिष्कार,विज्ञान की नई।
रचना,रचयिता की नई।
कहानी ,लेखक की नई।
विद्यालय के बच्चे हैं यही।


नई घटा,हवा की।
नया सूर ,सरगम की।
नये तारे, सौर मंडल के।
यही है, विद्यालय के बच्चे।


नई किरण सुरज की।
नये रंग ईन्द्रधनुष के।
नई पंखुड़िया फुलो की।
नई उमंग सब लोगों की


यही है ,विद्यालय के बच्चे
बच्चे हैं,विद्यालय के यही। ~~~~~~~रमेश कुमार सिंह ♌

बुधवार, 11 मार्च 2015

कुछ नहीं (कविता)

वह है छोटा,
महान,
पर कितना ।
निखट्टू,
सभी मानते हैं।
मामूली
सभी के नजर में।
महत्त्व ,
कोई नहीं जानता।
उसका दर्द,
कोई नहीं जानता।
सबको सुख,
देता है दर्द,
सहते हुअे।
कटता है खुद,
लिखावट,
देता है अच्छी सबको।
वह है सिर्फ और सिर्फ,
एक पेन्सिल।
कटता रहता है
हर समय वह।
तब तक जब तक,
उसका अस्तित्व,
खत्म न हो जाए।
जीवन समाप्त न हो जाए।
सोचों,
एक छोटी वस्तु
हमारे लिए करती है
कितना  कुछ,
उसके लिए ,
हम क्या करते हैं।
कुछ नहीं,
कुछ भी नहीं,
कभी नहीं
~~~रमेश कुमार सिंह