बुधवार, 22 अप्रैल 2015

जा रहा था मैं --!! (यात्रा वृतांत)

मैं कुद्रा रेलवे स्टेशन पर ज्यों ही पहुंचा तभी एक आवाज़ सुनाई दी   कि गाड़ी थोड़ी देर में प्लेट फार्म नम्बर  दो पहुंचने वाली है आवाज़ को सुनते ही मेरे अन्दर इधर टीकट कटाने की तो उधर गाड़ी छुट न जाए  यही दो बातें दिल के अन्दर आने लगी तभी अचानक मेरी नजर टिकट घर की तरफ गई वहाँ पर देखा भिड़ बहुत ज्यादा थी एक दूसरे में होड़ मची हुई है उसी भिड़ में भी शामिल हो गया बड़ी मशक्कत के बाद टिकट कटा लिया और जेब में रखते हुए प्लेट फार्म की तरफ बढ़ा तभी गाड़ी के हार्न की आवाज़ सुनाई दी और गाड़ी प्लेट फार्म पर आकर खड़ी हो गई।मैं गाड़ी पर चढने के लिए आगे बढ़ा तो देखा गाड़ी की सभी बोगी में  भारी भरकम भीड़-भाड़ दीखाई दे रही थी उसी भीड़ में एक जगह मेरी भी थी लेकिन निर्णय नहीं कर पा रहा था कि वो जगह कहाँ पर हैं। तभी गाड़ी का संकेत हरा हो जाता है,हरा होने के वजह से मुझे जगह का निर्णय लेना मेरी मजबूरी हो जाती है और मैं एक जगह उसी भिड़ में बना लेता हूँ।
                   गाड़ी अपने रफ्तार में अपने गन्तव्य स्थान की तरफ़ बढ रही है।मैं बैठने के लिये जगह की तलाश करने लगा थोड़ी देर बाद जगह मिल गई।आराम से बैठ गया खिड़की के रास्ते मेरी नजर बाहर निकल गई और विचरण करने लगी ,कहीं लहराते फसलों में,कहीं वृक्षों की डालियों पर उलझते हुए आगे बढ रही है। पेड़,पौधे,फसल,चंचलता का भाव लिये हुए हैं।
                     तभी अचानक मौसम ने करवट ली और और आसमान में काले-काले बादल उमड़ने लगा इसी काले-काले बादलों के डर से सूर्य की किरणें सूर्य में समाहित हो गई।इतना ही नहीं बल्कि पेड़ पौधे भी अपनी पत्तियों का रंग बदलने लगे उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि कोई उन पर सामत आने वाली है। तभी बिजली की चमक के साथ-साथ बादलों के टकराने की आवाज़ आने लगी,अंधकार छाने लगा। हवा में गति तेज हो गई धुल की मात्राएँ बढ गई, तभी अचानक बादल जो आवाज़ कर रहे थे वो पानी का रूप लेकर धरती माँ के आचल में मोतियों के बुन्द की तरह बिखेरने लगे।
                    उधर एक तरफ प्यासी हुई धरती माँ की प्यास बुझती है वहीं दूसरी तरफ वही दूसरी तरफ किसानों के उगाये हुए फसल जो अपने अन्तिम चरण में है वो आत्मा समर्पण कर रहे हैं,अपने अस्तित्व को मिटाकर किसानों के हृदय पर गहरी चोट दे रहे हैं।थोड़ी देर पहले सब कुछ ठीक चल रहा था और थोड़ी देर बाद ही सब अस्त-व्यस्त हो जाता है बर्बाद हो जाता है। तभी गाड़ी की रफ्तार में कमी आने लगी मुझे आभास हुआ कि अब रुकने की कोशिश कर रही है मुझे भी तैयार हो जाना चाहिए ।बहुत कोशिश के बाद जो मेरी नजरें खिड़की के रास्ते बाहर में  बिखरे पड़े थे उन्हें किसी तरह से इक्कठा किया। तब-तक गाड़ी मुगलसराय के प्लेट फार्म पर ठहराव ले चुकी थी फिर मैं बाहर निकला तो देखा मौसम साफ है न पानी बरस रहा है न धुलभरे कण दिख रहा है बिलकुल  सुहाना मौसम बन गया है कभी-कभी ऐसा भी होता है सुख भरे पल में ही निहित होता है बड़ा दुखो का भण्डार।
                  एक तरफ पानी बरसने से लोगों को गर्मी से राहत मिलता है वहीं दूसरी तरफ खाद्य पदार्थ के क्षतिग्रस्त होने से भावी कष्ट होने की संभावना भी है।
----@रमेश कुमार सिंह
----२१-०५-२०१५
 

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