मंगलवार, 26 मई 2015

मुझे ऐसा लगा .....! (कविता)

मुझे ऐसा लगा आपका चेहरा उदास है
कहाँ खोये रहती हैं लगाईं क्या आश हैं
जब मैं चला अपने आशियाना की तरफ,
ऐसा लगा रोकने का कर रही प्रयास हैं।
आँखों में देखा भरा आँसुओं का शैलाब है
उमड़ रहा था जैसे बादल भरा बरसात है
स्पष्टतः हृदय  की आवाज़ झलक रही थी,
कह रही  रुक जाइए करनी कुछ बात है।
मौन की ही भाषा में चल रही कुछ बात है
अन्तरात्मा की आवाज़ उठा रहीं सवाल है 
जाकर क्या करेगें ? ठहरिए कुछ देर तक,
बाकि है दिल की तमन्ना पूर्ण  की आश है।
--------रमेश कुमार सिंह ♌
-------१८-०४-२०१५

रविवार, 24 मई 2015

चाँदनी रात (कविता)

दीवस के समापन के बाद
अंधकार का धिरे-धिरे छा जाना।
और उनके बीच टिमटिमाते तारो का,
नजर आना।
मानो जुगनू की तरह विचरण करना।
अप्रतिम सुन्दरता को साथ लिए,
इसी बीच में खुशबुओं को विखेरती हुई।
लोगों को शीतलता प्रदान करती हुई।
मन्द मन्द धिमा प्रकाश ज्योति के सहारे।
गगन में तारों के फौज के बीच में,
मौज के साथ आनन्दित हुए।
अंधेरी रातों में ठन्ढी बयारों के बीच
चाँद ने अपनी चाँदनी को ,
पृथ्वीवासिओं को प्रदान कर रही है।
मन प्रफुल्लित सपनों में हो रहे हैं
-----@रमेश कुमार सिंह
-----०८-०४-२०१५

शनिवार, 23 मई 2015

जेठ की दुपहरी (कविता)


जेठ की दुपहरी में सुरज ने खोल दिया नैन।
अपनी तपती हुई गर्मी से किया सबको बेचैन ।
पशु-पक्षियों ने छोड़ने लगे अपना रैन।
मानव भी इस तपन में हो गया बेचैन।

नदी और झरना कर दिये अपने पानी को कम
सुख गई सभी नदियाँ झरने हो गये सब  बन्द
त्राहि -त्राहि  मच गया सभी जीवों में एक संग
लगे भागने इधर उधर हो गये सब तंग

कुआँ और तालाब की हालत हो गई शिकस्त
सूर्य को पानी समर्पित कर दिखाने लगे तल
चिड़िया चहचहाकर खोजने लगी पीने का जल
नलकूप भी जहा तहा अपना तोड़ने लगे दम
-----@रमेश कुमार सिंह

गुरुवार, 14 मई 2015

हौसला (कविता)

अपने हौसला को बुलन्द रखना है
सम्भल-सम्भलकर यहाँ चलना है
जिन्दगी के सफर में काटे बहुत है
अपने पथ से बिचलित नहीं होना है


जो भी आते हैं समझाकर रखना है
अपने शक्ति में  मिलाकर रखना है
सीखना-सीखाना है उन्हे सत्य का पाठ
इस कार्य को कर्तव्य समझकर चलना है


हम जो भी है अभी इसे नहीं गवाना है
इसी के बल पर आगे रास्ता बनाना है
हक के लिए हमेशा लड़ना है यारों
सरकार हो या नेता कभी पिछे नहीं हटना है


पहले हम लोगों को कायदा बनाकर चलना है
भाई चारे का भाव बरकरार रख कर चलना है
अगर फिर भी नहीं छोड़ते हैं हम पर राज करना
कफन सर पर बाधकर,सामना डटकर करना है।
---------@रमेश कुमार सिंह

मंगलवार, 12 मई 2015

फिर हिली धरती!!! (कविता)

धरती के अन्दर उदगार उठा
जिससे भू-पर्पटी हिलने लगा
आपसमें शोर हुआ चारों ओर
अफरा - तफरी मचने लगा


लोग मकानों से निकलकर
बन गये सब पथ के राही।
चर्चा विषय चहुओर बनाकर
भागे सवत्र जान बचाकर।


मच गया चारों तरफ हंगामा
चाहे नुक्कड़ हो या चौराहा
गाँव-गाँव हर गली -गली में
कई जगह हर शहर-शहर में


फिर भी ईश्वर की कैसी लिला है
क्षण भर में दुखित कर देता है
पलभर में प्रलय मचाकर यहाँ,
अपनी शक्ति का प्रमाण देता है
@रमेश कुमार सिंह /१२-०५-२०१५
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शुक्रवार, 8 मई 2015

मंजिल (कविता)

मंजिल की तरफ बढते रहना।
हरदम कदम को बढ़ाते रहना
जिन्दगी, है लक्ष्य को पाने लिए
उन्नति  के पथिक  बने रहना।
जिन्दगी में बहुत सी समस्याएँ।
धैर्य के बल पर इसे निपटाएँ ।
तभी होगे  हम  लोग मजबूत,
सबको यही हम पाठ सीखाएँ।
रास्ता  है  बहुत  टेड़ा-मेड़ा।
पार करना  जिवन का बेड़ा।
रोड़े  आते  रहते हैं बहुत से,
सबसे तो निपटना ही पड़ेगा।
हिम्मत रखकर आगे बढना।
लक्ष्य से कभी नहीं भटकना।
हमेशा यही कोशिश करना।
मंजिल तक जरूर पहुँचना।
---------रमेश कुमार सिंह

बुधवार, 6 मई 2015

मानव (कविता)

मानव अब मानव नहीं रहा।
मानव अब दानव बन रहा।
हमेशा अपनी तृप्ति के लिए,
बुरे कर्मों को जगह दे रहा।


राक्षसी वृत्ति इनके अन्दर।
हृदय में स्थान  बनाकर ।
विचरण चारों दिशाओं में,
दुष्ट प्रवृत्ति को अपनाकर।


कहीं  कर रहे हैं लुट-पाट।
कहीं जीवों का काट-झाट।
करतें रहते बुराई का पाठ,
यही बुनते -रहते सांठ-गाँठ।


यही  मानवीय गतिविधियां।
बनाते हैं अपनी आशियाना।
देखते नहीं हैं अपने अन्दर,
बताते हैं दूसरों में खामियां।
------रमेश कुमार सिंह
http://shabdanagari.in/website/article/मानवकविता
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रविवार, 3 मई 2015

गरीबी


गरीबी मनुष्य के जीवन में एक मिट्टी की मूर्ति के समान स्थायीत्व और चुपचाप सबकुछ देखकर सहने  के लिए मजबूर करती है शायद उसकी यही मजबूरी उसके जिन्दगी के सफर में एक कोढ़ पैदा कर देती है।ईश्वर भी अजीबोग़रीब मनुष्य को बना दिया है किसी को ऐसा बनाया है कि वो खाते -खाते मर जता है कोई खाये बिना मर जाता है वास्तव में जब कोई गरीबी की मार झेलता है। न जाने उसे कैसी -कैसी यातनाएँ झेलनी पड़ती होगी।उसके उपर क्या गुजरती होगी।वो अच्छा कार्य करने के पश्चात् भी किसी के सामने उसमें कहने की हिम्मत नहीं होती उसके अन्दर बहुत सी बातें आती है लेकिन समाज ने ऐसा उसे एक दर्जा  प्रदान कर दिया है वो उसी के दायरे में रहकर अपने हर काम को करने के लिए मजबूर हो जाता है।इतना ही नहीं इन गरीबों के प्रति सरकार भी अव्यवहार करती है इनके लिए अलग वर्ग बाट कर रख दी है।गरीबों के लिए गरीब भोजन गरीबों के लिये गरीब आवास गरीबों के लिए ट्रेनों में गरीब ट्रेन (समान्य बोगी) बना दी गई।उस ट्रेन में एक तरफ लोगों को बैठने के लिये जगह नहीं मिलता है दूसरी तरफ़ लोग आराम से पैर फैला कर मिठे सपने बुनते सफर करते हैं।एक तरफ लोगों की समस्या के वजह से हालत खराब हो रही है दूसरी तरफ सपनों की नदी में तैरते हुए आनंद के साथ सफर कर रहे हैं।जिन्दगी का सफर दोनों काट रहे हैं एक तरफ कष्टकारक है तो एक तरफ दुखदायक है।क्या ईश्वर की लिला है जिन्होंने मनुष्य को बनाते समय अपने पर भी गर्व किया होगा कि मैं भी एक अच्छे इनसानों को बनाया है। लेकिन वो बनाते समय यह नही सोचे होगें कि ये लोग इतना बड़ा हैवानियत को अपने अन्दर पाल लेगे।
          फिर लौटते है उस गरीब की तरफ जो एक दाना के लिए किसी चौराहे पर सुबह से साम तक पेट की छुदा को शान्त करने के लिए एक मनुष्य ही मनुष्य के चेहरे को एक टक देखते रहता है उसकी याचना भरी आखों के सामने कई तरह के चेहरे साम तक नजर आते है। फिर भी उसके पेट की भुख समाप्त नहीं हो पाती है। और उसी रास्ते के बगल में आसमान रूपी छत के नीचे अपनी निंद को पुरा करना चाहता है पर भुख के मारे उसकी निंद पुरा नही होती है और स्वास्थ्य खराब हो जाता है उसके जिन्दगी का सफर पुरा नही हो पाती है ।उस गरीब की रह जाते हैं अधुरे सपने रह जाते हैं अधूरे ख्वाब और रह जाती हैअधूरी जिन्दगी।
               गरीबों का कोई अस्तित्व है  मुझे नहीं लगता ऐसा इनका कोई अस्तित्व नहीं है आज के समय में,हाँ इनका एक अस्तित्व है जब किसी को इनकी जरूरत पड़ती है तो चले आत हैं इनका शोषण करने के लिए और अपना स्वार्थ सिद्धि पुरा कर लेते हैं। शायद यही एक गरीब का हाल होता है। आज के समय में एक गरीब होना सबसे बड़ा गुनाह है। हे ईश्वर सबको सबकुछ देना लेकिन गरीबी मत देना।
-----------------@रमेश कुमार सिंह

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धरती में कंपन
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